हमारे देश भारत में पूरे साल को, तीन मुख्य ऋतुओं में बांटा गया है, ग्रीष्म ऋतु, वर्षा ऋतु और शीत ऋतु । इसके अलावा तीन उप ऋतुएं भी होती है। भारत जैसे कृषि प्रधान देश के लिए इन सभी ऋतुओं का बहुत महत्व होता है। लेकिन, आमतौर पर वर्षा ऋतु, यह सभी ऋतुओं में से सबसे ज्यादा पसंद की जाने वाली ऋतु है। यहां हमने वर्षा ऋतु पर कुछ निबंध प्रस्तुत किए है:
वर्षा ऋतु पर छोटे एवं बड़े निबंध (Short and Long Essay on Rainy Season in Hindi)
प्रथम निबंध (250 शब्द)
प्रस्तावना :
हमारे देश भारत में कई प्रकार की ऋतु में पाई जाती हैं जिनमें से एक है वर्षा ऋतु। वर्षा ऋतु मई और जून की झुलसती गर्मी के बाद जुलाई महीने से आरंभ होकर अगस्त-सितंबर तक रहती है। वर्षा ऋतु के आरंभ होते ही प्राणियों और जीव-जंतुओं के जीवन में हर्षोल्लास की लहर दौड़ जाती है। चारों तरफ हरियाली और मनमोहक दृश्य लोगों के मन को शांति पहुंचाते हैं। वर्षा ऋतु संपूर्ण विश्व के पर्यावरण के लिए अत्यंत लाभकारी होती है।
वर्षा ऋतु और पर्यावरण
मानसूनी पवने भारत के दक्षिण पश्चिमी तट से प्रवेश करती हैं जिसके कारण भारत-पाकिस्तान और अन्य सीमा से सटे क्षेत्रों में बारिश होती है। यह मानसूनी पवने इन क्षेत्रों में जून माह से लेकर सितंबर तक सक्रिय रहती हैं। मानसूनी का अर्थ होता है; ऐसी पवने जो किसी क्षेत्र में किसी विशेष ऋतु में वर्षा कराती है। मानसून पूरी तरह से हवाओं के ऊपर निर्भर रहता है; यानि कि जब हवाएं अपनी दिशा बदलती है तब मानसून आता है।
वर्षा के आरंभ होते ही चारों ओर हरियाली छा जाती है किसानों की फसल लहला उठती है; सूखे जंगलो में भी नए बीज अंकुरित हो जाते हैं। वर्षा ऋतु पर्यावरण तंत्र को संतुलित बनाए रखने में बहुत ही अहम भूमिका निभाती है।
उपसंहार :
भारत की सभी ऋतुओं में सबसे अहम स्थान वर्षा ऋतु का होता है। हमें वर्षा की मात्रा को बढ़ाने और पर्यावरण का संतुलन बनाए रखने के लिए पेड़ों की कटाई को रोकने तथा अधिक से अधिक पौधों को लगाने का कार्य भी करना चाहिए।
द्वितीय निबंध (300 शब्द)
प्रस्तावना :
सामान्यतः भारत में वर्षा ऋतु के आगमन का समय 15 जून यानी जून महिने का उत्तरार्ध होता है और यह 15 सितंबर यानी कि, सितंबर माह के पूर्वार्द्ध तक रहती है। अनेक बार कई कारणों से यह अवधि कम या ज्यादा हो सकती है। मई के महिने में, तपती गर्मी और उमस से परेशान जन जीवन और धूप में झुलसे हुए सुखे पेड़ पौधे और वनस्पतियां, जून महीने की आहट लगते ही, बारीश की राह देखते है।
वर्षा ऋतु का महत्व
किसानों के लिए तो वर्षा ऋतु, ईश्वर के वरदान के समान होती है। भारत कृषि प्रधान देश है और यहां लगभग साठ से सत्तर फीसदी खेती, वर्षा ऋतु पर ही निर्भर करती है। बारीश यदि सही समय पर और सही प्रमाण में आ जाती है तो, फसलों का उत्पादन बढ़ता है, जिससे किसानों को इसका बहुत लाभ होता है।
साथ ही साथ अपरोक्ष रुप से महंगाई भी कम होती है। वर्षा के कम होने या फिर ना होने से वर्षा पर निर्भर रहने वाले किसानों और जीव-जंतुओं का जीवन संकट में आ सकता है; क्योंकि भारत में आज भी ज्यादातर किसान अपनी खेती के लिए वर्षा पर निर्भर रहते हैँ। पारिस्थितिकी तंत्र को संतुलित बनाए रखने में वर्षा ऋतु का अहम योगदान है।
उपसंहार :
हम सभी को जीव दायिनी वर्षा ऋतु का आदर करना चाहिए। वर्षा ऋतु बहुत सुहानी होती है, इसका आनंद पूरे हर्षोल्लास के साथ उठाएं। अपने आस पास स्वच्छता रखें, मख्खी और मच्छरों का इलाज करें, स्वस्थ रहें और अपने परिवार को भी बीमारियों से बचाएं।
तृतीय निबंध (400 शब्द)
प्रस्तावना :
इस संसार में ईश्वर ने कई सारी ऐसी कलाकृतियां हमें दी हैं, जिनके माध्यम से हम प्रकृति के वास्तविक स्वभाव के बारे में समझ सकते हैं और उनके बारे में अपने विचार रख सकते हैं। अगर हम अपने चारों तरफ देखें तो हमें कई सारी ऐसी चीजें नजर आती हैं जिनसे हमें कुछ ना कुछ नया सीखने को मिलता है। जीवन में चल रहे कई बार इन उठल पुथल को हम प्राकृतिक नजारों के माध्यम से भी कम कर सकते हैं और एक सुकून प्राप्त कर सकते हैं। हम जिस प्राकृतिक और मनोहर दृश्य की बात कर रहे हैं, वह है वर्षा ऋतु। वर्षा का नाम सुनते ही हम सभी के मन में एक अलग ही उल्लास पैदा हो जाता है और हमें चारों और हरियाली नजर आने लगती हैं।
वर्षा ऋतु का आगमन
जैसा कि हम सभी को पता है कि वर्षा ऋतु का आगमन हो चुका है कभी-कभी हमसे आंख मिचौली करती है लेकिन जब भी यह हमारे सामने आती है तो मन खुशी से झूम उठता है। वैसे तो वर्षा ऋतु का आगमन जून के महीने से माना जाता है बावजूद इसके कभी-कभार साल भर वर्षा ऋतु के दर्शन हमें हो जाते हैं। वर्षा ऋतु का आगमन हमारी फसलों के लिए भी खुशहाली का पैगाम लेकर आते हैं और साथ ही साथ पक्षियों को भी कलरव का सही मौका देते हैं।
क्या है वर्षा ऋतु के मायने
हमने स्कूली जीवन में कई बार इस विषय के बारे में जाना और समझा है लेकिन जैसे जैसे हमने अपनी उम्र के पड़ाव को पार किया है, तो हमने माना कि वर्षा ऋतु के मायने हमारे अंदर अलग अलग तरीके से देखे गए है। अगर गौर करेंगे तो पाएंगे कि वर्षा के माध्यम से हम खुद के मनोभावों को व्यक्त कर सकते हैं और वर्षा ऋतु के बाद आने वाली हरियाली को देखते हुए हम अपने मन को हरा भरा कर सकते हैं।
सुनने में यह बड़ा ही अजीब लग रहा होगा लेकिन यह सच है क्योंकि हमारे मन का अच्छा होना हरे रंग से ताल्लुक रखता है। ऐसे में बहुत संभव है कि वर्षा ऋतु के मायने हमारे लिए सही लेकिन अलग हो सकते हैं।
उपसंहार :
इस प्रकार से हमने जाना कि वर्षा ऋतु हमारे लिए बहुत ही जरूरी है और इसके हर इंसान के जीवन में अलग अलग मायने हो सकते हैं, जो जीवन को एक अलग दिशा की तरफ ले जाते हैं इसलिए खुलकर वर्षा ऋतु का मजा लीजिए और हमेशा खुश रहिए।
चतुर्थ निबंध (500 शब्द)
प्रस्तावना :
ग्रीष्म ऋतु की, तन को सुलगाने वाली भीषण गर्मी के बाद, वर्षा की थंडी फुहारें, सभी के मन को आनंद और उत्साह से भर देती है। धूप की तपिश से जलती हुई धरती पर भी बारीश की बूंदें बड़ी ही सुखद लगती है। चारों ओर छाई हरियाली और मिट्टी की सौंधी महक से वातावरण सुगंधित और मनमोहक हो जाता है। अपनी गुलाबी थंड से तन और मन में नवचैतन्य भर देने वाली वर्षा ऋतु, भला किसे पसंद नहीं होगी। इसलिए यह बिल्कुल भी आश्चर्य की बात नहीं है कि, वर्षा ऋतु सबकी मनपसंद ऋतु होती है।
वर्षा ऋतु के प्रभाव
वर्षा ऋतु जिस तरह अपने साथ अनेक खुशियां और लाभ लेकर आती है उसी प्रकार इसके कुछ नुकसान भी होते हैं; अतिवृष्टि यानी कि आवश्यकता से बहुत ज्यादा बारिश, और अनावृष्टि यानी कि आवश्यकता से बहुत कम बारिश, यह वर्षा ऋतु से होने वाले दो प्रमुख नुकसान होते हैं। बहुत कम बारिश होने से, सुखे की भयावह परिस्थिति उत्पन्न हो जाती है, और पानी के अभाव में लोगों का जीवन बुरी तरह प्रभावित हो जाता है।
मनुष्य और पशु पक्षियों का जीवन खतरे में आ जाता है। पूरी तरह बारिश पर निर्भर कृषि नष्ट हो जाती है। बारिश की आस में बैठे, किसानों की परिस्थिति विकट हो जाती है। यहां तक कि इससे कई बार किसानों ने परेशान होकर आत्महत्या भी कर ली। उसी तरह, अति सर्वत्र वर्जयेत अर्थात किसी बात की अधिकता भी नुकसान दायक होती है।
अत्यधिक बारीश से भी जन जीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है। चारो तरफ हाहाकार मचाने वाली बारीश से बाढ़ जैसी स्थिति पैदा हो जाती है, जिससे कई जानों के साथ साथ, और कई महत्वपूर्ण बातों और संसाधनों का भी नुकसान हो जाता है। अधिक वर्षा के कारण भूमि का कटाव भी हो जाता है जिससे उपजाऊ मिट्टी पानी के साथ-साथ बह जाती है।
वर्षा ऋतु अपने साथ-साथ मौसमी बीमारियां भी लाती है जैसे हैजा, मलेरिया, खांसी-जुकाम इत्यादि। सही समय पर सही वर्षा होने से ही जीव जंतुओं के लिए पानी और चारा उपलब्ध नही हो पाता और सूखा पड़ने की संभावना भी होती है।
अनावृष्टि यानी कि आवश्यकता से बहुत कम बारिश से भयंकर गर्मी के कारण सभी पेड़-पौधे, घास, तालाब और नदियां भी सूख जाती हैं। जिस वजह से पर्यावरण का संतुलन ही बिगड़ जाता है। इसके अलावा, वर्षा ऋतु में, कई बार सूर्य देवता के दर्शन होना भी मुश्किल हो जाता है। सूर्य का प्रकाश हमारे लिए हर दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। सूर्य के प्रकाश की कमी से वातावरण में उष्णता कम होती है और नमी बढ़ जाती है जिससे सर्दी, खांसी और जुकाम जैसे संक्रामक रोगों का खतरा बढ़ जाता है।
उपसंहार :
वैसे तो प्रकृति के अपने नियम व कायदे होते हैं, और वह उन्ही नियमों का पालन करती है। जब भी कभी प्रकृति के नियमों को मनुष्य द्वारा नजरंदाज किया जाता है या उनके साथ छेड़छाड़ की जाती है, तब तब प्रकृति अपने तरीके से मनुष्य को सबक जरूर सिखाती है। अतिवृष्टि, बाढ़, तुफान, अनावृष्टि, सूखा, भूकंप इत्यादि इसी के दुष्परिणाम होते हैं।
अन्न और जल के बिना प्राणियों के जीवन की कल्पना मात्र भी नहीं की जा सकती है और यह सब हमें मिलता है वर्षा ऋतु के कारण। इस प्रकार वर्षा ऋतु, इस सृष्टि के सभी प्राणियों के लिए प्रकृति द्वारा प्रदत्त एक वरदान ही है। इसलिेए, वर्षाकाल में ऋतु के पानी का संरक्षण और संवर्धन करने के उपायों पर विचार करना चाहिए।
आज आपने क्या सीखा ):-
यहां हमने आपको वर्षा ऋतु पर छोटे तथा बड़े निबंध उपलब्ध कराए हैं। उम्मीद करते हैं आप यह सीख गए होंगे कि इस विषय पर निबंध कैसे लिखना है। यदि हमारे द्वारा लिखे गए यह निबंध आपके लिए उपयोगी साबित हुए हैं तो अपने मित्रों के साथ SHARE करना ना भूले।