Milkha Singh Biography in Hindi: ऐसे धावक जिन्होंने अपनी जिंदगी में सभी 80 रेसों में भाग लिया और 77 को जीता, जी हां हम बात कर रहे हैं फ्लाइंग सिख मिल्खा सिंह के बारे में (About Milkha Singh) इस लेख में आर्मी के प्रसिद्ध धावक भारत की शान “मिल्खा सिंह के संक्षिप्त प्रेरणादायक जीवन परिचय” (Biography of Milkha Singh in Hindi) को जानेंगे.
Milkha Singh Biography in Hindi (धावक मिल्खा सिंह की प्रेरणा स्रोत जीवनी)
विश्व में असाधारण प्रतिभा के स्वामी बहुत कम लोग होते हैं। ऐसी ही एक असाधारण प्रतिभा के धनी हैं- मिल्खा सिंह। वास्तव में, मिल्खा सिंह केवल एक नाम नहीं हैं, बल्कि साहस, संघर्ष औऱ प्रेरण की एक ऐसी कहानी हैं जिसने बचपन में भारत –पाक बँटवारे के दौरान अपना पूरा परिवार खोने के बावजूद अपनी राह खुद बनाई और मेहनत के बल पर बुलन्दियों को छुआ ।
मिल्खा सिंह का जन्म (Birth of Milka Singh) 20 नवम्बर, 1929 को पंजाब प्रान्त को मुजफ्फरगढ़ जिले के गोविन्दपुरा गाँव में हुआ था। यह स्थान पाकिस्तान में स्थित है। हालॉकि उनकी जन्मतिथि सन्दिग्ध है। कुछ सरकारी दस्तावेजों के अनुसार यह जन्मतिथि 17 अक्टूबर 1935 या 20 नवम्बर 1935 हैं।
सिख राटौर परिवार में जन्मे मिल्खा सिंह को बचपन में भारत –पाक बँटवारे के दौरान हूई हिंसा में अपने पूरे परिवार को खोना पड़ा था । वह किसी तरह भागकर भारत आ रहे थे यहाँ आकर उन्होनें कुछ समय तक पुराना किला रिफ्यूजी कैम्प और शाहदरा पूनर्वास कॉलोनी में शरण ली एक समय था, जब अनाथ मिल्खा सिंह के मन में अपने परिवार को खोने के बाद बहुत रोष था और उन्होंने डाकू बनने की ठान ली थी, लेकिन उनके ही एक भाई मलखान सिंह ने उन्हे भारतीय सेना में भर्ती होने की सलाह दी । मिल्खा सिंह पर अपने भाई की सलाह का असर हुआ और उन्होंने आर्मी में भार्ती होने की कोशिशें शुरू कर दी। वर्ष 1951 में अपने चौथे प्रयास में इन्हे भारतीय सेना में जगह मिल गई।
सिकन्दराबाद स्थित यूनिट में भर्ती होने के बाद मिल्खा सिंह के जीवन की एक नई शुरूआत हुई और उनके अन्तर्राष्ट्रीय कैरियर का मार्ग भी यहीं से खुला । यहाँ आने के बाद मिल्खा सिंह एक अनिवार्य दौड़ में हिस्सा लिया, जिसमें उनके अच्छे प्रदर्शन से प्रभावित होकर आर्मी ने उन्हें धावक बनने की विशेष ट्रेनिंग देने हेतु चुन लिया । बचपन में मिल्खा सिंह को स्कूल जाने के लिए रोजाना लगभग 10 किमी दौड़ना पड़ता था। इसी कारण वह आर्मी द्नारा आयोजित इस दौड़ में अच्छा प्रदर्शन कर सके थे।
इसके बाद आर्मी के कोच हवलदार गुरदेव सिंह ने उन्हें कड़ा प्रशिक्षण देना आरम्भ किया । सौभाग्य से मिल्खा सिंह को वर्ष 1956 के मेलबर्न ओलम्पिक गेम्स में 200 मी और 400 मी की दौड़ में भारत का प्रतिनिधित्व करने के लिए चना गया । इन प्रतिस्पर्द्धाओं में सिंह कोई पदक नहीं जीत सके, क्योकिं वे अभी प्रशिक्षण के आरम्भिक चरण से गुजर रहे थे, लेकिन इससे उन्हें मानसिक तौर पर अच्छा करने की प्रेरणा अवश्य मिली। इस प्रेरण का ही प्रभाव था कि वर्ष 1958 और 1960 के बीच मिल्खा सिंह ने बहुत ख्याति अर्जित की ।
वर्ष 1958 में उन्होने राष्ट्रीय खेलों में हिस्सा लिया और 200 मी और 400 मी की दौड़ में स्वर्ण पदक जीतकर रिकॉर्ड भी बनाया। इसी वर्ष उन्होनें राष्ट्रमण्डल खेलों में 200 और 400 मी दौड़ में भाग लेकर स्वर्ण पदक जीते । वर्ष 2014 में विकास गौंड़ा द्वारा राष्ट्रमण्डल खेलों में स्वर्ण पदक जीतने से पूर्व मिल्खा सिंह एकमात्र ऐसे एथलीट रहें हैं, जिन्होने राष्ट्रमण्डल खेलों में एथलेटिक्स प्रतिस्पर्द्धाओं में वैयक्तिक स्तर पर स्वर्ण पदक प्राप्त किया हैं।
वर्ष 1958 के टोकियो एशियाई खेलों मे भी इन्ही श्रेणी की दौड़ो मे भाग लेकर मिल्खा सिंह मे स्वर्ण पदक प्राप्त किया । सिंह ने वर्ष 1960 में हुए रोम ओलम्पिक खेलों में 400 मी की दौड़ में भी हिस्सा लिया, लेकिन केवल 0.1 सेकण्ड के अन्तराल से वह कॉंस्य पदक जीतने से चूक गए और स्पर्द्धा में चौथे स्थान पर रहें। इसके बाद, वह वर्ष 1962 के जकार्ता एशियाई खेलों मे विजेता रहे।
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इस प्रकार मिल्खा सिंह वर्ष 1955 से लेकर 1962 के दौरान एक के बाद एक सफलता प्राप्त करके राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय एथलीट परिदृश्य पर पूरी तरह से छाए रहे। वर्ष 1960 मिल्खा सिंह के लिए विशेष तौर पर महत्वपूर्ण रहा। इस वर्ष उन्हें पाकिस्तान के धावक अब्दुल खालिद के साथ एक स्पर्ध्दा में भाग लेने के लिए पाकिस्तान सरकार द्वारा आमन्त्रित किया गया। प्रारम्भ में, भारत- पाक बँटवारे से बुरी पं. जवाहरलाल नेहरू के आग्रह पर सिंह ने न केवल दौड़ में हिस्सा लिया, बल्कि अपने पाकिस्तानी प्रतिद्वन्द्वी को हराया भी। दौड़ खत्म होने के बाद तत्कालीन राष्ट्रपति जनरल अयूब खान ने मिल्खा सिंह को ‘फ्लाइंग सिख’ के नाम से पुकारते हुए कहा था –“आज तुम दौड़े नहीं, उड़े थे।” इसी के बाद मिल्खा सिंह को ‘फ्लाइंग सिख’ कहा जाने लगा ।
देश को राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति दिलाने वाले ‘फ्लाइंग सिख’ को अब तक अनेक पुरस्कार और सम्मानों द्वारा नवाजा जा चुका है।एक धावक रूप में अच्छा प्रदर्शन करने के कारण उन्हें सेना में पदोन्नति मिली और सेना से सेवानिवृत्त होने के बाद उन्हें पंजाब के शिक्षा मंत्रालय के के अन्तर्गत खेल निदेशक नियुक्त किया गया।
वर्ष 1959 सिंह को ‘पद्मश्री’ और ‘हेल्स सम्मान’ से भी सम्मानित किया गया। सिंह ने वर्ष 2013 मे अपने जीवन पर आधारित एक पुस्तक ‘द रेस ऑफ माइ लाइफ’ लिखी थी, जिस पर वर्ष 2014 मे ‘भाग मिल्खा भाग’ के नाम से एक फिल्म भी बन चुकी है। इस फिल्म को काफी सराहना मिली और देशवासियों ने इसे बहद पसन्द भी किया। इस समय मिल्खा सिंह चण्ड़ीगढ़ में रह रहे हैं । उनका वैयक्तिक जीवन भी काफी प्रेरणादायक है। इस उम्र में भी वह बहुत सक्रिय रहते हैं। अब वह शौकिया तौर पर गोल्फ खेलते हैं और साथ ही ‘मिल्खा सिंह चैरिटेबल ट्रस्ट’ भी चलाते हैं। इस ट्रस्ट के माध्यम से वह जरूरतमन्द खिलाड़ियों को सहायता प्रदान करते हैं।
उल्लेखिनीय है कि मिल्खा सिंह और उनकी पत्नी निर्मल कौर ने वर्ष 1999 में एक सात साल के लड़के को गोद लिया था, जो टाइगर हिल की लड़ाई में शहीद हुए उनके साथी विक्रम सिंह का बेटा था। मिल्खा सिंह का जीवन करोड़ों भारतीयों के लिए सामाजिक और व्यक्तिगत, दोनों स्तरों पर प्रेरणादायक और अनुकरणीय है। वह ओलम्पिक रिकॉर्ड बनाने वाले अब तक अकेले भारतीय धावक हैं। उनके पुत्र जीव मिल्खा सिंह ने उनके बारे में सच ही कहा है- “मिल्खा सिंह कई पीढ़ियों में एक बार ही पैदा होता है।” भारत को अपने इस अभूतपूर्व धावक पर सदा गर्व रहेगा।
♦Conclusion♦
सबसे पहले यह लेख पढ़ने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद प्रस्तुत लेख में पदमश्री मिल्खा सिंह की जीवनी, भारतीय एथलीट जगत में उनके योगदान, के बारे में संक्षिप्त जानकारी दी गई. हम उम्मीद करते हैं कि Milkha Singh Biography in Hindi | फ्लाइंग सिख मिल्खा सिंह की जीवनी यह लेख आपको पसंद आया होगा, अगर आपको पसंद आया है तो नीचे हमें Comment में जरूर बताएं और इस लेख को अपने मित्रों के साथ Share करें.
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