महात्मा गांधी पर निबंध

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राष्ट्रपिता महात्मा गांधी अहिंसा के पुजारी और एक सत्यवादी महान पुरुष थे। उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन गरीबों के हक में व्यतीत किया। हमारे भारत देश को अंग्रेजों से मुक्त कराने में उन्होंने असीम योगदान दिया। महात्मा गांधी पर निबंध परीक्षाओं में सर्वाधिक पूछे जाने वाला विषय है अतः प्रिय छात्रों, यह परीक्षाओं के लिए काफी महत्वपूर्ण है। इस लेख में हमने महात्मा गांधी पर कुछ निबंध प्रस्तुत किए हैं :

महात्मा गांधी पर छोटे एवं बड़े निबंध (Short and Long Essay on Mahatma Gandhi in Hindi)

महात्मा गांधी पर निबंध - Mahatma Gandhi Essay in Hindi

द्वितीय निबंध (400 शब्द)

परिचय

महात्मा गांधी भारत की आजादी की लड़ाई के महानायक माने जाते हैं। महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता की उपाधि प्रदान की गई है; प्रेम से लोग उन्हें बापू कहकर पुकारते है। वह सत्य और अहिंसा के पुजारी थे। अहिंसा के मार्ग पर चलते हुए ही उन्होंने अंग्रेजों को भारत छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया।

जन्म एवं शिक्षा

महात्मा गांधी का पूरा नाम मोहनदास करमचंद गांधी है। इनका जन्म 2 अक्टूबर 1869 को गुजरात के पोरबंदर नामक स्थान पर हुआ। इनके पिता करमचंद गांधी राजकोट में दीवान और माता पुतलीबाई एक धार्मिक विचारक महिला थी। 

उन्होंने पोरबंदर जिले से अपने विद्यालय की शिक्षा पूरी करने के बाद राजकोट से अपने माध्यमिक परीक्षा उत्तीर्ण की और फिर वह वकालत की पढ़ाई करने के लिए इंग्लैंड चले गए। वर्ष 1891 में उनकी वकालत की शिक्षा पूरी हो गई। 

स्वतंत्रता संग्राम में योगदान

वर्ष 1914 में महात्मा गांधी भारत वापस लौटे और अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ समाज को एकजुट होने का प्रयत्न करने लगे। महात्मा गांधी ने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ ऐसे कई आंदोलन किए जिसकी वजह से उन्हें जेल भी जाना पड़ा।

सर्वप्रथम उन्होंने बिहार के चंपारण जिले कि किसानों के हितों के लिए आवाज उठाई। वर्ष 1920 में गांधी जी द्वारा असहयोग आंदोलन की शुरुआत की गई। उन्होंने सभी भारत वासियों से कहा कि वह सभी असहयोग आंदोलन में उनकी मदद करें और स्कूल-कॉलेज तथा न्यायालय ना जाकर सरकारी सेवाओं का बहिष्कार करें।

इसी प्रकार सविनय अवज्ञा आंदोलन और पूर्ण स्वराज्य की मांग भी महात्मा गांधी के नेतृत्व में, अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ चलाए गए प्रमुख आंदोलन थे। वर्ष 1930 में साबरमती आश्रम से दांडी गांव तक पैदल मार्च करने के बाद उन्होंने नमक बनाकर नमक कानून तोड़ा।

वर्ष 1942 में भारत की स्वतंत्रता के लिए ब्रिटिश सरकार के खिलाफ भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत की गई। इन सभी में असहयोग आंदोलन और भारत छोड़ो आंदोलन काफी प्रभावशाली रहा। अंततः वर्ष 1947 में अंग्रेजों से भारत को अंग्रेजी हुकूमत से स्वतंत्रता मिल गई।

महात्मा गांधी की मृत्यु

30 जनवरी 1948 को नाथूराम गोडसे नामक व्यक्ति के द्वारा महात्मा गांधी जी की गोली मारकर हत्या कर दी गई। भले ही महात्मा गांधी हम सभी के बीच मौजूद नहीं है लेकिन आज भी लोग उनके विचारों और सिद्धांतों को अपने जीवन में अहमियत देते हैं।

निष्कर्ष एवं प्रेरणा

महात्मा गांधी सत्य के मार्ग पर चलने वाले एक अहिंसा वादी व्यक्ति और भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के प्रमुख राजनीतिक नेता भी थे। उनके सिद्धांतो में से तीन मुख्य सिद्धांत थे “बुरा ना बोलो, बुरा ना देखो और बुरा ना सुनो”। सत्य के मार्ग और अहिंसा का पालन करते हुए उन्होंने अंग्रेजों को भारत छोड़ने पर मजबूर कर दिया था।

उनके महान कार्यों को देखते हुए वर्ष 2007 में संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा गांधी जयंती के दिन को “विश्व अहिंसा दिवस” के रूप में मनाए जाने की घोषणा कर दी। हमें भी अपने जीवन में गांधी जी के आदर्श जीवन से प्रेरणा लेकर सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलना चाहिए यही बापू के प्रति हमारी सच्ची श्रद्धांजलि होगी।


द्वितीय निबंध (500 शब्द)

परिचय

सत्य और अहिंसा के परम पुजारी महात्मा गांधी जी को उनके देश के प्रति अतुल्य एवं असीम योगदान के लिए उन्हें राष्ट्रपिता और बापू का दर्जा दिया गया है। बे सत्यवादी होने के साथ-साथ गरीबों के मसीहा भी थे। उन्होंने अपनी संपूर्ण जीवन काल में सामाजिक एकता और छुआछूत दूर करने पर सर्वाधिक बल दिया। उनका उद्देश्य संपूर्ण समाज संगठित कर ऊंच-नीच के भेदभाव को दूर करना था।

जन्म एवं प्रारंभिक जीवन

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को पोरबंदर गुजरात में हुआ था। महात्मा गांधी के पिता करमचंद गांधी राजकोट में एक दीवान और माता पुतलीबाई एक विचारक महिला थी। बापू ने अपनी पढ़ाई इंग्लैंड में कानून में पूरी की थी। पेशे से भी एक वकील थी जीवन के प्रारंभिक दिनों में उन्होंने बहुत कष्टों का सामना किया किंतु प्रयास करना कभी नहीं छोड़ा। महात्मा गांधी जी के अनुसार पर सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र जी के जीवन से बड़े ही प्रेरित थे। इसी कारण उन्होंने सत्य का मार्ग अपनाया। 

बापू सादा जीवन उच्च विचार में विश्वास रखते थे। उनके जीवन व्यतीत करने के तौर-तरीके बड़े साधारण थे। बे खादी के वस्त्र धारण किया करते थे। महात्मा गांधी सदैव समाज को संगठित करने का कार्य करते रहते थे। महात्मा गांधी एक सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में रंगभेद नीति को दूर करके ऊंच-नीच भेदभाव को और हरिजन शब्द को हमेशा हमेशा के लिए खत्म करना चाहते थे।

एक सच्चे स्वतंत्रता सेनानी

महात्मा गांधी जी द्वारा समाज की रूढ़ियों को दूर करने एवं भारतवर्ष को स्वतंत्र कराने के लिए बहुत से आंदोलनों को चलाया गया। जिनमें से असहयोग आंदोलन, भारत छोड़ो आंदोलन, दांडी यात्रा जैसे कुछ प्रमुख अभियान शामिल है। 

बापू सभी स्वदेशी वस्तुओं का इस्तेमाल करते थे और उनका उद्देश्य भी यही था कि संपूर्ण देशवासी स्वदेशी वस्तुओं का प्रयोग करें। उन्होंने ब्रिटिश सरकार द्वारा हमारे देश में बेची जा रही वस्तुओं का बहिष्कार किया। इसके लिए उन्होंने बहुत से आंदोलन किए थे। जिनमें से असहयोग आंदोलन और डांडी यात्रा जैसी कुछ बहुत प्रमुख है।

इसके बाद अंत में सन 1942 में उनके द्वारा भारत छोड़ो आंदोलन चलाया गया। यह इतना प्रभावशाली हुआ कि कुछ वर्षों बाद सन 1948 में भारत और पूर्ण स्वतंत्र हो गया और ब्रिटिश सरकार को भारत छोड़कर जाना पड़ा।

बापू की मृत्यु

देश की सेवा करती करती 30 जनवरी सन 1948 को इस महान पुरुष की मृत्यु हो गई। इनका अंतिम संस्कार दिल्ली में राजघाट पर किया गया जहां पर आज भी लाखों पर्यटक बापू की समाधि को देखने के लिए विश्व से एकत्रित होते हैं। इसी कारण 30 जनवरी संपूर्ण भारतवर्ष में शहीद दिवस के रूप में मनाया जाता है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के यह शब्द आज भी हम सभी का हृदय जीत लेते हैं उन्होंने कहा था

मुझे धन दौलत नहीं चाहिए। मान -सम्मान, इज्जत नहीं चाहिए। भारत का राज्य नहीं चाहिए मुझे सिर्फ भारत की आजादी चाहिए। 

प्रेरणा एवं निष्कर्ष

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का देश के प्रति यह असीम योगदान कभी भुलाया नहीं जा सकता भले ही उन्होंने अपनी देह त्याग दी हो किंतु भी आज भी समस्त भारत वासियों के हृदय में अपनी शिक्षा, कार्यों के लिए विराजमान है।

उन्होंने अनेकों कष्ट सहे किंतु सत्य और अहिंसा का मार्ग कभी नहीं छोड़ा। उन्होंने जो सपना भारतवर्ष को आजाद कराने का देखा था; उसे पूर्ण करके दिखाया। उनके इन अतुल्य कार्यों के लिए उन्हें जन्म जन्मांतर तक याद करेगा और उनके द्वारा दी गई शिक्षा समाज को जागृत करेगी।


तृतीय निबंध (600 शब्द)

प्रस्तावना :

महात्मा गांधी को हम सब राष्ट्रपिता और बापू के नाम से भी जानते हैं। इनका पूरा नाम मोहनदास करमचंद गांधी था। 2 अक्तूबर 1869 को, गुजरात के पोरबंदर में जन्मे, महात्मा गांधी का नाम, भारतीय इतिहास के पन्नों पर स्वर्णाक्षरों से लिखा गया है। भारत को अंग्रेजों की गुलामी के अंधेरे से बाहर निकालने में महात्मा गांधी का योगदान भुलाया नहीं जा सकता है।

आरंभिक जीवन

भारत में, राजकोट और पोरबंदर में, मेट्रिक तक शिक्षा प्राप्त करने के बाद, सन् 1888 में आगे की पढ़ाई के लिए महात्मा गांधी, इंग्लैंड गए जहां उन्होंने कानून की शिक्षा पूरी की और बेरिस्टर की डिग्री प्राप्त की। 1891 में वे भारत लौटे और यहां वकालत करने लगे। कुछ दिनों बाद वे वकालत करने अफ्रीका चले गए।

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में योगदान

अफ्रीका से भारत वापस आकर, महात्मा गांधी ने, भारत की आज़ादी के लिए काम करना शुरू किया। जब अफ्रीका में उन्होंने अपने साथ साथ, अन्य भारतीय लोगों के साथ अत्याचार होते हुए देखा तभी उन्होने अन्याय के विरुद्ध आवाज उठाने का संकल्प किया और भारत वापस आकर; अंग्रेजी सरकार के विरुद्ध आवाज उठाने का फैसला किया।

उस समय भारत में फैली कई बुराइयों जैसे अस्पृश्यता, अशिक्षा, को दूर करने और पिछड़े वर्गों का विकास, शराब बंदी तथा स्त्रियों का उत्थान और शिक्षा का स्तर उपर उठाने के लिए उन्होंने बहुत से कार्य किए। अस्पृश्यता जैसी कुरितयों को समाप्त करने के लिए भी उन्होंने कई प्रयास किए।

असहयोग आंदोलन, दलित आंदोलन, नमक आंदोलन, चंपारण सत्याग्रह, स्वदेशी अपनाओ आंदोलन, दांडी मार्च, भारत छोड़ो आंदोलन जैसे अहिंसात्मक आंदोलनों के द्वारा उन्होंने ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध संघर्ष किया था। जिसके लिए उन्हें कई बार जेल भी जाना पड़ा था। इसमें भारतीय जनता के साथ साथ, कई महान नेताओं ने भी उनका साथ दिया था।

आखिरकार अथक प्रयासों के बाद, भारत को स्वतंत्र देखने का उनका सपना पूरा हो गया और 15 अगस्त 1947 को भारत, अंग्रेजी सरकार की गुलामी से आजाद हो गया। लेकिन, दुर्भाग्यवश 30 जनवरी 1948 को गांधी जी की हत्या कर दी गई। जो भारत के इतिहास का एक काला दिवस माना जाता है।

गांधीजी के व्यक्तित्व की विशेषताएं

साधा जीवन और उच्च विचार का अनुसरण करने वाले गांधीजी, एक कुशल और जनप्रिय नेता होने के साथ साथ एक महान समाजसेवी भी थे। उनमें कुशल नेतृत्व की क्षमता थी, क्योंकि उनके एक आव्हान पर हजारों की भीड़ उनके साथ चल देती थी।

कोमल हृदय के गांधीजी के मन में, गरीबों और असहायों के प्रति दयाभाव कूट कूट कर भरा था , इसलिए भारत में फैली गरीबी और लाचारी को देखकर, उन्होंने सूट-बूट पहनना छोड़ दिया और साधारण धोती पहनने लगे, जिसके लिए वे स्वयं ही चरखा चलाकर सूत कातते थे। इससे प्रभावित होकर कई लोगों ने भी उनका अनुकरण करना शुरू कर दिया। गांधीजी भारत को स्वतंत्र देखने के साथ साथ, स्वावलंबी भी देखना चाहते थे।

उपसंहार :

गांधीजी के जीवन से जुड़ी ऐसी कई बातें हैं, जो हमें जीवन में कुछ अलग सोचने और अच्छा करने की प्रेरणा देती है। हमें भी गांधीजी के जीवन से प्रेरणा लेकर, सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलना चाहिए। और अपने देश के प्रति हमेशा समर्पित रहना चाहिए।

आज आपने क्या सीखा ):-

यहां हमने आपको महात्मा गांधी पर छोटे तथा बड़े निबंध उपलब्ध कराए हैं। उम्मीद करते हैं आप यह सीख गए होंगे कि इस विषय पर निबंध कैसे लिखना है। यदि हमारे द्वारा लिखे गए यह निबंध आपके लिए उपयोगी साबित हुए हैं तो अपने मित्रों के साथ SHARE करना ना भूले।

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