दिवाली पर निबंध

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दिवाली हिंदू धर्म का बहुत ही प्रमुख पांच दिवसीय सबसे बड़ा त्योहार है। दीपावली शब्द का अर्थ है – दीपो की आवली अर्थात दीपों की पंक्ति। हिंदू पंचांग के अनुसार कार्तिक मास की अमावस्या को मनाया जाने वाला यह त्योहार अमावस्या की रात को दीपों की रोशनी में और भी खूबसूरत बना देता है। यहां हमने दिवाली पर कुछ निबंध प्रस्तुत किए हैं:

दिवाली पर छोटे तथा बड़े निबंध (Short and Long Essay on Diwali in Hindi)

दिवाली पर निबंध - Diwali Essay in Hindi

निबंध – 1 (300 शब्द)

प्रस्तावना :

दिवाली, हिंदू धर्म में मनाया जाने वाला एक सबसे प्रमुख त्योहार है। पूरे भारत में उमंग और उल्लास के साथ मनाया जाने वाला, दिवाली का यह त्योहार, बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है। बारीश का मौसम समाप्त होने पर, अक्तूबर या नवंबर में, जब खेतों के काम खत्म हो जाते हैं और नई फसल के रूप में, अनाज घर में आता है, तब दिवाली का पर्व मनाया जाता है।

दिवाली मनाने का कारण

जब श्रीराम जी, रावण को युद्ध में हराकर, सीताजी और लक्ष्मण के साथ, चौदह वर्षों के वनवास के बाद, अयोध्या वापस आएं थे तो उनके स्वागत के लिए, अयोध्या वासियों ने इसी तरह अपने अपने घरों को दियों से सजाया था। भगवान श्रीकृष्ण ने भी इसी दिन, नरकासुर नामक दैत्य का संहार किया था। इसलिए तभी से दिवाली मनाने की परंपरा है।

दिवाली पर हर्षोल्लास

दिवाली का त्योहार, पांच दिनों तक चलता है। खूब आनंद और मस्ती के साथ मनाएं जाने वाले दिवाली के त्योहार का, बच्चे हो या बड़े सभी बेसब्री से इंतजार करते हैं। दिवाली के कुछ दिनों पहले से ही, घरों की साफ-सफाई और सजावट शुरू हो जाती है। नएं कपड़े, नई वस्तुएं और गहने आदि खरीदे जाते हैं।

तरह तरह के पकवान और मिठाइयां बनाई और खिलाई जाती हैं। मुख्य द्वार पर रंग-बिरंगी रांगोली बनाईं जाती है और पूरे घर को कंदील और दियों से सजाया जाता है। खूब सारी रौशनी से घर आंगन जगमगा जाता है। बच्चे और बड़े, सभी पटाखों का आनंद लेते हैं।

उपसंहार :

अंत में यह त्योहार हमें हमेशा यह सिखाता है कि असत्य पर हमेशा सत्य की विजय होती है। साथ ही हमें जिंदगी में हमेशा आगे बढ़ते रहना चाहिए और एक दीपक की तरह समाज को प्रकाशित करना चाहिए। आपस में मिल जुल कर रहना चाहिए और लोगों की मदद करनी चाहिए।


निबंध – 2 (400 शब्द)

प्रस्तावना :

दिवाली, बहुत ही शुभ और पवित्र त्योहार है। कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को मनाया जाने वाला यह पर्व, रौशनी का त्यौहार कहलाता है;  लोग खूब धूमधाम और हर्षोल्लास के साथ, पांच दिनों तक इस त्योहार को मनाते हैं।

दिवाली कैसे मनाते हैं

घरों में, दिवाली के त्योहार की तैयारी, पहले से ही शुरू हो जाती है। दिवाली का संबंध, विशेष रूप से धन की देवी, मां लक्ष्मी जी से है, और मां लक्ष्मी जी को स्वच्छता बहुत प्रिय है। इसलिए,  मां लक्ष्मीजी के स्वागत के लिए लोग अपने घरों को स्वच्छ करते हैं और सजाते व संवारते हैं।

मिट्टी के दीयों और तरह तरह की रौशनी से अपने घर को सजाते हैं। दरवाजे पर सुंदर सुंदर रांगोली बनाईं जाती है। फूलों और पत्तों के तोरण से मुख्य द्वार को सजाया जाता है। खुब सारे पकवान और मिठाइयां बनाईं जाती है, जिनका मां लक्ष्मीजी को भोग लगाया जाता है।

दिवाली के पांच दिनों तक चलने वाले इस त्योहार के हर दिन अलग अलग देवताओं की पूजा, अलग-अलग विधियों से की जाती है। त्योहार की शुरुआत, धन तेरस से होती है। कार्तिक मास की त्रयोदशी को धनतेरस मनाते हैं। इस दिन, लोग अपने धन की पूजा करते हैं। इस दिन, देवताओं के वैद्य, धनवंतरी की पूजा भी की जाती है।

दिवाली का दूसरा दिन यानी कि, कार्तिक मास की चतुर्दशी को मनाया जाने वाला त्योहार, नरक चतुर्दशी कहलाता है। इसे रुप चौदस भी कहते हैं। इस दिन, प्रातः काल, सूर्योदय के पहले उठकर, उबटन व सुगंधित तेल इत्यादि लगा कर स्नान किया जाता है। और पूजा करके, कई जगहों पर नरकासुर राक्षस का पुतला जलाया जाता है।

फिर आता है, लक्ष्मी पूजन का दिन। कार्तिक  मास की, अमावस्या को यह त्योहार मनाया जाता है।  इस दिन मां लक्ष्मीजी के आरोग्यदायी रुप का पूजन करने का भी बहुत महत्व है। इसलिए इस दिन, लक्ष्मी जी के फोटो के सामने, धन, रुपये-पैसे, गहने इत्यादि की पूजा के साथ साथ, नई झाड़ू की भी पूजा की जाती है।

चौथा दिन गोवर्धन पूजा का होता है। इस दिन को पड़वा या प्रतिपदा भी कहते हैं। इस दिन गोवर्धन पूजा होती है। गोवर्धन पूजा के बाद, भाई दूज मनाया जाता है। इसे यम द्वितीया भी कहते हैं। इस दिन, बहने अपने भाई की आरती उतारती है और भाई अपनी बहन को उपहार देता है। इस तरह, धन तेरस से शुरू होकर, भाई दूज पर, दिवाली के त्योहार की समाप्ति होती है; और लोग फिर से इस, महोत्सव के जल्दी आने की कामना करते हैं।

दिवाली खास क्यों है

दिवाली का त्यौहार असत्य पर सत्य की जीत और अंधकार पर प्रकाश की विजय का प्रतीक है। वैसे तो दीपावली हिंदू धर्म का मुख्य त्यौहार है किंतु इसे और धर्मों के लोग भी अपनी-अपनी रूप में मनाते हैं। दीपावली त्योहार मनाने की अलग अलग मत हैं।

सिख धर्म की पवित्र मंदिर स्वर्ण मंदिर का शिलान्यास भी इसी दिन हुआ था। सिख भी इस दिन को बड़ा ही पवित्र मानते हैं और बड़े ही हर्ष उल्लास के साथ दीपावली मनाते हैं।

नेपाल में भी यह त्योहार काफी हर्षोल्लास से मनाया जाता है। क्योंकि इस दिन नेपाल संवत का प्रारंभ होता है और नया वर्ष शुरू होता है। दीपावली के दिन ही आर्य समाज के संस्थापक महर्षि दयानंद जी ने अपनी समाधि ली थी। ऐसी कई अनेकों प्रसिद्ध घटनाएं दीपावली के दिन संपन्न हुई इसलिए यह दिन और भी खास बन जाता है।

उपसंहार :

दीपावली महोत्सव पर प्रत्येक व्यक्ति को अपने जीवन में यह सीख लेनी चाहिए कि वह सदैव अच्छाई का साथ देगा; क्योंकि इस पर्व को मनाने के पीछे का उद्देश्य भी यही है। अंधकार चाहे कितना भी हो किंतु प्रकाश सदैव उस पर विजय पाता है; अतः बुराई का अंत निश्चित होता है।


निबंध – 3 (500 शब्द)

प्रस्तावना :

हमारे देश भारत में, कई उत्सव व त्योहार मनाएं जाते हैं। संक्रांति, होली, दिवाली, रक्षाबंधन, आदि हमारे प्रमुख त्योहार है, जिन्हें बहुत ही उमंग और हर्षोल्लास के साथ, पूरे देश में मनाया जाता है। कार्तिक मास में आने वाली दिवाली का त्योहार, हिंदुओं का सबसे प्रमुख त्योहार है। यह त्योहार, पांच दिनों तक चलता है; और किसी महोत्सव की तरह धूमधाम से मनाया जाता है।

दिवाली क्यों मनाते हैं

वैसे तो दीपावली हिंदू धर्म का मुख्य त्यौहार है किंतु इसे और धर्मों के लोग भी अपनी-अपनी रूप में मनाते हैं। दीपावली त्योहार मनाने की अलग अलग मत हैं।

कहां जाता है, चौदह वर्षों का वनवास पूरा करके, जब भगवान श्री रामचंद्र जी , बुराई यानी कि रावण का वध करके अयोध्या पहुंचे थे, तब उनका स्वागत अयोध्यावासियों ने बड़े ही धूमधाम से एक उत्सव की तरह किया था। वह दिन दिवाली का ही था, तभी से हमारे देश में दिवाली मनाने की परंपरा शुरू हुई थी।

दिवाली का महत्व

दिवाली के त्योहार का पारिवारिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक और आर्थिक दृष्टि से हमारे जीवन में अत्यंत महत्व है। इस त्योहार का प्रत्येक दिन हमें कुछ ना कुछ शिक्षा अवश्य देता है। अंधकार से प्रकाश की ओर लेकर जाने वाला यह त्योहार, बुराई पर अच्छाई की जीत का भी प्रतीक है।

दिवाली खुशियों का त्योहार है । इस त्यौहार के जरिए सभी लोग आपस में सारी बातें भुलाकर मिलते जुलते हैं। एक दूसरे के साथ प्रेम भावना से त्योहार मनाते हैं। दिवाली पर उसे एक बेहद खास फायदा है ; इतनी सारी दीपक एक साथ जलती हैं; इससे पर्यावरण का शुद्धिकरण होता है और यह समस्त जीवधारियों के लिए बेहद लाभकारी है।

दीवाली की तैयारियां

मां लक्ष्मीजी, के आगमन के प्रतीक, दिवाली के त्योहार पर, घरों को दियों, फूलों, रांगोली और रौशनी से सजाया जाता है घरों से विविध प्रकार के पकवानों की खुशबू आती है। बच्चे दिवाली के त्योहार को मनाने के लिए, खासे उत्साहित दिखाई देते हैं। पटाखे, नए कपड़े और मनपसंद पकवानों की खुशी उनके आनंद को बढ़ा देती है। बड़े भी इस त्योहार का आनंद पूरे दिल से उठाते हैं।

कार्तिक मास में इस त्योहार की शुरुआत होती है, लेकिन घरों में इस महोत्सव को मनाने की तैयारियां, बहुत पहले से ही शुरू हो जाती है। घरों की अच्छी तरह साफ-सफाई और रंग-रोगन किया जाता है। इस दिनों बाजारों की रौनक, देखते ही बनती है। दिवाली के सभी दिन बहुत शुभ होते हैं, इसलिए लोग इन दिनों, नएं कपड़े और जरुरी सामान के अलावा, बड़ी और मुल्यवान वस्तुओं जैसे इलेक्ट्रॉनिक उपकरण, घर, जमीन जायदाद, गहने आदि की भी खरीददारी करते हैं।

पांच दिवसीय महापर्व

इस उत्सव के, पहले दिन धनतेरस होती है। कार्तिक महिने के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को धनतेरस मनाते हैं। धनतेरस के दिन, लोग अपनी धन संपत्ति की पूजा करते हैं और नई वस्तुएं, बर्तन, सोने या चांदी के गहने आदि खरीदते हैं। देवताओं के चिकित्सक, धनवंतरी समुद्र मंथन के बाद, इसी दिन अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे। इसलिए आयुर्वेद के ज्ञाता, इस दिन भगवान धन्वंतरि की उपासना भी करते हैं।

इस महापर्व का दूसरा दिन, नरक चतुर्दशी का होता है,  भगवान श्रीकृष्ण ने इस दिन नरकासुर नामक असुर का वध किया था। और नरकासुर के द्वारा बंदी बनाई गई, कन्याओं को छुड़ाया था। इसके उपलक्ष्य में, नरक चतुर्दशी का पर्व मनाया जाता है।इस दिन सूर्योदय के पहले उठकर, उबटन और सुगंधित तेल आदि से स्नान किया जाता है। इस दिन को रुप चौदस भी कहते हैं।

तीसरे दिन, यानी कि कार्तिक मास की अमावस्या को, मां लक्ष्मी जी की विशेष पूजा की जाती है। यह एक बड़ा उत्सव होता है। इसी दिन, मां लक्ष्मीजी समुद्र मंथन के समय प्रकट हुई थी। इसलिए इस दिन, माता लक्ष्मीजी की विधिवत पूजा की जाती है। और उनका स्वागत धूमधाम से किया जाता है।

इस समारोह का चौथा दिन, गोवर्धन पूजा का होता है।इस दिन, भगवान श्रीकृष्ण को 56 भोग लगाकर, अन्नकूट पर्व मनाया जाता है। पांचवां और अंतिम दिन, भाई बहन का होता है, यानी कि इस दिन भाई दूज मनाई जाती है। बहने अपने मायके आकर अपने भाईयों को टिका लगाती है और उनकी मंगलकामना करती है। भाई अपनी बहनों को उपहार देता है।
इस तरह, दिपावली का यह महोत्सव, समाप्त होता है और बहुत सारी खट्टी मीठी यादें हमें दे जाता है।

उपसंहार :

दिवाली का त्योहार, हम सभी के जीवन में, आनंद और उत्साह लेकर आता है। माता लक्ष्मी जी, का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए, घर घर में उनकी पूजा, पूरे विधि-विधान के साथ की जाती है।  बच्चों को तो यह त्योहार विशेष रूप से प्रिय हैं। दिवाली के इस पावन पर्व पर, अपने व्यवहार से किसी को दुख ना पहुंचे, इस बात का ध्यान और पटाखे इत्यादि छोड़ते समय सावधानी सावधानी बरतनी चाहिए।

आज आपने क्या सीखा ):-

यहां हमने आपको दिवाली पर छोटे एवं बड़े निबंध उपलब्ध कराए हैं। उम्मीद करते हैं आप यह सीख गए होंगे कि इस विषय पर निबंध कैसे लिखना है। यदि हमारे द्वारा लिखे गए यह निबंध आपके लिए उपयोगी साबित हुए हैं तो अपने मित्रों के साथ SHARE करना ना भूले।

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