Swami Vivekananda Biography in Hindi: स्वामी विवेकानंद एक महान विद्वान होने के साथ-साथ युवाओं के रोल मॉडल भी हैं. उन्होंने भारतवर्ष का नाम संपूर्ण संसार में सुनहरे पन्नों में दर्ज कराया. आज भी हजारों युवा “Swami Vivekananda” जी के आदर्शों पर चलकर अपने जीवन में सफलता हासिल करते हैं.
विचारशील महान विद्वान “स्वामी विवेकानंद की प्रेरक जीवनी” (Biography of Swami Vivekananda in Hindi) नीचे लिखा गया है आप इसको पढ़कर स्वामी विवेकानंद जी के बारे में (About Swami Vivekananda) बहुत सी जानकारी प्राप्त करेंगे और उनके द्वारा किए गए सामाजिक कार्यों और अच्छे विचारों के बारे में जानेंगे.
Swami Vivekananda Biography in Hindi (स्वामी विवेकानंद की प्रेरणादायक जीवनी)
नाम – नरेंद्रनाथ विश्वनाथ दत्त |
जन्म – 12 जनवरी 1863 कलकत्ता (पं. बंगाल) |
माता का नाम – भुवनेश्वरी देवी |
पिता का नाम – विश्वनाथ दत्त |
शिक्षा – 1884 मे बी. ए. /स्कॉटिश चर्च कॉलेज |
धर्म – हिन्दू |
गुरु का नाम – रामकृष्ण परमहंस |
विवाह – अविवाहित |
कथन– “उठो, जागो और तब तक नहीं रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाये” |
सन्यास-1887 ई0 |
महत्वपूर्ण काम-न्यूयार्क में वेदांत सिटी की स्थापना, कैलिफोर्निया में शांति आश्रम |
मृत्यु – रात्री के 1:10, 4 जुलाई, 1902 बेलूर, पश्चिम बंगाल, भारत |
जीवन दर्शक स्वामी विवेकानंद जी का जन्म 12 जनवरी सन 1863 (Birth of Swami Vivekanand) एसपी में मकर संक्रांति के प्रातः काल में कोलकाता शहर मे श्री विश्वनाथ दत्त जी के घर पर 6:33 मिनट पर हुआ था. इस महान पुरुष का पहला नाम वीरेश्वर रखा गया था, क्योंकि यह महादेव वीरेश्वर की पूजा करके प्राप्त हुई थे इनकी माता जी का नाम भुवनेश्वरी देवी और पिताजी का नाम श्री विश्वनाथ दत्त था .इनके पिता जी द्वारा इनको नरेंद्र नाथ नाम दिया गया था.
बालक नरेंद्र बचपन से ही बहुत होशियार और बहुत ही प्रतिभाशाली थी. अपनी बाल्यावस्था में ही इन्होंने व्याकरण के सारे नियम कंठस्थ कर लिए थे.बह हमेशा रामायण महाभारत और गीता के श्लोक सदैव याद करते रहते थे. बचपन में जब वह पहली बार विद्यालय गई, तो वहां पर उन्हें अंग्रेजी भाषा पढ़ने को मिली उन्होंने अंग्रेजी भाषा को विदेशी भाषा कहकर पढ़ने से इनकार कर दिया और उसका विद्रोह किया अपनी मातृभाषा को सर्वोपरि रख. जबकि इन्होंने अंग्रेजी भाषा पर भी अपना अधिकार स्थापित कर रखा था.
स्वामी विवेकानंद बचपन में इतनी मेधावी थे, कि बे किसी भी प्रकार की परीक्षा बहुत ही आसानी से पास कर लेती थे. इन्होंने भारत के इतिहास का अपने हाईस्कूल होने से पहले ही संपूर्ण अध्ययन कर लिया था. स्वामी विवेकानंद पढ़ाई के साथ साथ खेल गायन और संगीत मैं हमेशा प्रथम रहते थे. स्वामी विवेकानंद जी का प्रिय खेल फुटबॉल था.
जब 16 साल के थे तब इन्होंने कोलकाता प्रसिद्ध प्रेसीडेंसी कॉलेज की प्रवेश परीक्षा पहली रैंक में पास करे ली और 1880 में वहां प्रवेश ले लिया. 1 साल बाद इन्होंने जनरल असेंबलीज इंस्टीट्यूशंस में प्रवेश ले लिया यह कॉलेज बाद में स्कॉटिश चर्च कॉलेज के नाम से बहुत प्रसिद्ध हुआ यहीं पर रहकर स्वामी जी ने पहली बार श्री रामकृष्ण परमहंस जी का नाम सुना था और यहीं से बे उनसे मिलने के लिए उत्सुक हो गए. इसी कॉलेज से इन्होंने बी0ए0 किया.
पढ़ाई के साथ साथ इनमें भाषण की कला गजब थी. किसी प्रकार का भाषण देने के लिए इन्हें कोई तैयारी नहीं करनी पड़ती थी वे किसी भी विषय पर भाषण देने के लिए सदैव तैयार रहते थे. इसी से खुश होकर कर प्रसिद्ध लेखक और उनके प्रधानाध्यापक प्रोफ़ेसर हेस्टी0 ने कहा था “नरेंद्र एक वास्तविक प्रतिभाशाली युवक है मैंने दूर दूर तक की यात्राएं की हैं, किंतु ऐसा प्रतिभाशाली लड़का नहीं देखा “
नरेंद्रनाथ ने पहली बार श्री रामकृष्ण परमहंस जी का नाम अपने प्रधानाध्यापक के मुंह से सुना था. इसके बाद में उन्होंने कई सारी पत्रिकाएं पड़ी ,जो श्री रामकृष्ण परमहंस जी के बारे में थी. एक बार स्वामी रामकृष्ण परमहंस जी नरेंद्रनाथ के एक पड़ोसी के घर पर आए, नरेंद्र नाथ भी वहां गए हुए थे. स्वामी रामकृष्ण परमहंस जी ने नरेंद्र नाथ को वही देखा और उनकी ओर काफी आकर्षित हो गए, क्योंकि नरेंद्र में बहुत सी विलक्षण प्रतिभाएं उपस्थित थी. इसके पश्चात स्वामी जी ने उन्हें खुद मिलने के लिए बुलाया और उनसे भेंट वार्ता की.
एक बहुत ही महत्वपूर्ण संवाद श्री रामकृष्ण परमहंस जी ने नरेंद्र से एक सवाल किया, कि “क्या आपने ईश्वर को देखा है “नरेंद्र नाथ ने तुरंत उसका जवाब दिया और कहा” हां देखा है “उन्होंने कहा जिस प्रकार “मैं इस संसार में सभी को देख रहा हूं उसी प्रकार ईश्वर को भी देखा जा सकता है और उसके साथ बातें की जा सकती हैं”. यह बात सुनकर स्वामी जी बहुत आश्चर्यचकित हो गए और उन्होंने पहचान लिया कि यह कोई साधारण बालक नहीं है.
नरेंद्रनाथ ने नवंबर 1881 अर्थात जब श्री रामकृष्ण परमहंस जी ने महासमाधि ग्रहण की, में सन्यास ग्रहण कर लिया और संसार की सेवा में जुट गए. और यहीं से उन्होंने अपना नाम विवेकानंद प्राप्त किया. इस सेवा के लिए उन्होंने अपना घर परिवार सब त्याग दिया. इसके साथ साथ ही वे दुनिया के भ्रमण पर भी निकले उन्होंने संपूर्ण भारतवर्ष की यात्रा की और अपने भ्रमण के अनुभव को बढ़ाया.
11 सितंबर 1893 एक ऐसा दिन था जिस दिन स्वामी विवेकानंद जी ने समस्त भारतवर्ष का नाम संपूर्ण संसार में गौरववित किया. स्वामी विवेकानंद जी ने इस दिन अमेरिका के शिकागो शहर में चल रहे विश्व धर्म सम्मेलन में भाग लिया और वहां पर अपनी प्रतिभा और भारतवर्ष के इतिहास ज्ञान को दिखाने के लिए उसका हिस्सा बने.
स्वामी जी का एक वाक्यांश वहां पर बहुत ही प्रसिद्ध हो गया.और इस वाक्यांश से भारतवर्ष का नाम संपूर्ण संसार में एक अलग पहचान के साथ लिखा गया. जब स्वामी जी मंच पर भाषण देने पहुंचे तो उन्होंने अपने भाषण की शुरुआत इन शब्दों से की –“अमेरिका वासी भाइयों और बहनों “
इस वाक्यांश को सुनते हैं संपूर्ण हॉल तालियों से गूंज उठा क्योंकि वहां पर जितने भी वक्ता आए हुए थे वे अपने भाषण की शुरुआत लेडीस एंड जेंटलमेन से कर रहे थे और स्वामी जी ने अपने भाषण की शुरुआत “अमेरिका वासी भाइयों और बहनों ” शब्द से की, एक वाक्यांश ने उस हॉल में उपस्थित समस्त व्यक्तियों का हृदय जीत लिया.
1 मई 1897 को स्वामी जी ने अपने गुरु श्री रामकृष्ण परमहंस जी के नाम पर रामकृष्ण मिशन की स्थापना की. इस मिशन का उद्देश्य गरीब लाचार और दुखी मनुष्यों को ईश्वर के दर्शन उसकी सेवा आपदाओं पर जनसेवा और धर्म का प्रचार करना था. इसकी स्थापना बेलूर मठ में की गई.
इनके साथ साथ स्वामी विवेकानंद जी का स्वास्थ्य काफी बिगड़ रहा था किंतु वे समाज सेवा वा धर्म प्रचार से तनिक पीछे नहीं हट रहे थे. बह अपने शिष्यों को हमेशा उपदेश देते थे, कि मानव जीवन का उद्देश्य और परोपकार और सेवा है. जब तक यह उद्देश्य पूरा ना हो जाए तब तक जीना व्यर्थ है. मृत्यु धीरे धीरे निकट आ रही थी और एक दिन रात्री के लगभग 1:10 बजे हुए थे. स्वामी जी कुछ क्षण मौन रहे और फिर उनकी पुतलियां स्थिर हो गई और स्वामी विवेकानंद जी ने मात्र 39 वर्ष (Death of Swami Vivekananda) की लघु आयु में ही यह देह त्याग दी और पुण्य भूमि को प्राप्त हुए.
Swami Vivekananda Stories in Hindi (स्वामी विवेकानंद से जुड़े प्रेरक प्रसंग)
स्वामी विवेकानंद युवाओं के रोल मॉडल और मार्गदर्शक हैं स्वामी जी के जीवन का प्रत्येक क्षण प्रेरणादायक है. यदि हम कहें तो उनके जीवन से बहुत कुछ ऐसा सीख सकते हैं जिससे हम समाज और जीवन में उन्नति की ओर बढ़ेंगे. स्वामी “विवेकानंद से जुड़ी कुछ प्रेरणादायक कहानियां” (Swami Vivekananda stories in Hindi) यहां सम्मिलित की गई हैं उन्हें पढ़ते हैं-
“प्रेरक प्रसंग 1”
पीले रंग के वस्त्र, सिर पर पगड़ी और कंधे पर चादर डाले तथा हाथों में डंडा पकड़े स्वामी विवेकानंद जी अमेरिका देश के शिकागो शहर की सड़कों से गुजर रहे थे.
अमेरिका वासी उनकी वेशभूषा को देखकर आपस में उनका मजाक बना रहे थे. उनके पीछे चल रही एक महिला ने अपने साथी पुरुष से कहा ” जरा इन महाशय को तो देख लो कैसी विचित्र पोशाक पहनी है” स्वामी जी भी समझ गए थे, कि अमेरिका के निवासी उनकी इस भारतीय वेशभूषा को देखकर उनका मजाक बना रहे हैं.
तभी वे रुके और अपनी पीछे आ रही महिला से बड़ी ही करुण भाव में बोले “बहन” मेरे इन कपड़ों को देखकर आश्चर्यचकित मत हो. शायद आपके इस देश में कपड़े देख किसी व्यक्ति की सज्जनता परखी जाती होगी .किंतु जिस देश से मैं आया हूं. वहां व्यक्ति की सज्जनता कपड़ों से नहीं बल्कि उसके चरित्र से होती है. यह सुनकर उस महिला ने स्वामी जी से माफी मांगी.
“प्रेरक प्रसंग 2”
11 सितंबर 1813 का दिन अमेरिका मैं एक ऐतिहासिक दिन था.इस दिन अमेरिका के शिकागो शहर में अंतरराष्ट्रीय विश्व धर्म सम्मेलन का आयोजन हुआ था. संसार की समस्त देशों के धर्मगुरुओं ने अपने अपने धर्म का मत सभी के सामने रखा. भारत की ओर से इसका प्रतिनिधित्व करने स्वामी विवेकानंद पहुंचे थे.
जब स्वामी जी भाषण देने के लिए मंच पर पहुंचे और उन्होंने इन शब्दों ”अमेरिका वासी भाइयों और बहनों” से अपने भाषण की शुरुआत की. इस वाक्यांश को सुनकर समस्त हॉल तालियों से पूरे 2 मिनट तक गूंजता रहा. यह धर्म सम्मेलन 17 दिनों तक चला जिसमें स्वामी जी ने अपने 12 भाषण प्रस्तुत किए.
जोकि वहां सबसे प्रभावशाली रहे . धर्म सम्मेलन के बाद स्वामी जी को बहुत सी बड़े-बड़े नगरों सी भाषण देने के लिए आमंत्रण आने लगे. स्वामी जी जहां भी जाते थे वहां उनके दर्शनार्थियों कि चारों ओर भीड़ लग जाती थी. भारतवर्ष का यह तरुण सन्यासी विश्व विजय के रूप में प्रसिद्ध हो गया था. सचमुच भी समस्त समाज के लिए प्रेरणास्रोत हैं.
“प्रेरक प्रसंग 3”
शिकागो शहर में स्वामी जी के अद्भुत भाषण से काफी लोग स्वामी जी से प्रभावित हुए. इस भाषण के पश्चात जब अमेरिका वासी स्वामी जी के दर्शन कर रहे थे. तभी वहां एक अमेरिकी महिला उनके पास आई और बोली कि वह उनसे काफी प्रभावित है और उनसे शादी करना चाहती है.
यह शब्द सुनकर स्वामी जी ने कहा” कि वे एक सन्यासी है और उन्होंने जीवन पर्यंत शादी ना करने का प्रण लिया है. वे अपना संपूर्ण जीवन अपने देश की सेवा और समाज सुधार के लिए अर्पित कर चुके हैं. इस पर वह महिला स्वामी जी से जिद करने लगी और बोली कि मुझे तो आपके जैसा ही पुत्र चाहिए.
महिला के यह शब्द सुनकर स्वामी विवेकानंद जी ने उसे उत्तर दिया” कि यदि आपको मेरे जैसा पुत्र चाहिए. तो इसमें चिंता का क्या विषय है “मुझे ही आप अपने पुत्र के रूप में स्वीकार कीजिए और मैं आपको अपनी माता के रूप में स्वीकार करता हूं”.
“प्रेरक प्रसंग 4”
एक बार जब स्वामी विवेकानंद एक नदी के किनारे से गुजर रहे थे तो उन्होंने देखा कि कुछ बच्चे नदी में तैर रहे अंडों के छिलकों पर निशाना लगा रहे हैं परंतु किसी का भी निशाना सटीक नहीं लग रहा है. यह देख स्वामी जी ने उन बच्चों से स्वयं निशाना लगाने के लिए कहा और एक के बाद एक 12 निशाने लगाए.
जो कि सभी सटीक उन छिलकों पर लगे. यह देखकर सभी बच्चे आश्चर्यचकित रह गए और उन्होंने स्वामी जी से पूछा उन्होंने यह कैसे किया. इस पर स्वामी जी ने कहा किसी भी लक्ष्य को पूरा करने के लिए आवश्यक है कि आपका ध्यान उस लक्ष्य पर पूरी तरह से केंद्रित हो अतः किसी भी लक्ष्य को पूरा करने के लिए आपको सिर्फ उसी के बारे में सोचना चाहिए और पूरी मन और लगन के साथ उस पर कार्य करना चाहिए आपको सफलता अवश्य मिलेगी.
“प्रेरक प्रसंग 5”
सन 1881 ई0 में नरेंद्र (स्वामी विवेकानंद जी) से अपने प्रोफेसर द्वारा एक प्रश्न पूछा गया. अध्यापक ने पूछा कि क्या यह धरती, ब्रह्मांड, और हम सभी को ईश्वर ने बनाया है? इस पर नरेंद्र ने जवाब दिया “हां” तो प्रोफेसर ने दूसरा सवाल पूछा ठीक है. क्या शैतान को भी ईश्वर ने बनाया है? इस पर उन्होंने कोई उत्तर नहीं दिया और चुप हो गए किंतु प्रोफेसर से एक सवाल पूछने की अनुमति मांगी.
जब अध्यापक ने अनुमति दे दी तो उन्होंने पूछा क्या ठंड का कोई वजूद है? इस पर प्रोफेसर ने कहा “हां” तुमको ठंड नहीं लगती है. नरेंद्र ने कहा माफ कीजिएगा सर किंतु आप गलत है क्योंकि ठंड का कोई वजूद नहीं है.क्योंकि ठंड सिर्फ ऊष्मा के ना होने का एहसास है. उन्होंने तुरंत दूसरा प्रश्न और पूछा, क्या अंधकार का कोई वजूद है? इस पर प्रोफेसर ने कहा “हां” है. रात होने पर अंधकार होता.
नरेंद्र ने फिर कहां माफ कीजिए आप एक बार फिर गलत है क्योंकि अंधकार का कोई वजूद नहीं होता है अंधकार सिर्फ प्रकाश के ना होने एक घटना है वास्तव में इसका कोई अस्तित्व नहीं है. इसी प्रकार शैतान का कोई वजूद नहीं है शैतान सिर्फ प्यार, स्नेह, ईश्वर में आस्था ना होने और संबंधों मैं विश्वास के ना होने का एक एहसास है जिसका कोई वजूद नहीं है.
♦Conclusion♦
सबसे पहले यह लेख पढ़ने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद. यहां हमने आपको स्वामी विवेकानंद की प्रेरणादायक जीवनी, जीवन से मृत्यु तक की महान जीवन से अवगत कराया. उम्मीद करते हैं स्वामी विवेकानंद के जीवन परिचय पर आधारित यह लेख Swami Vivekananda Biography in Hindi | स्वामी विवेकानंद की प्रेरक जीवनी आपको बहुत पसंद आया होगा, अगर आपको पसंद आया है तो नीचे हमें कमेंट सेक्शन में जरूर बताएं और इस लेख को अपने मित्रों के साथ Share करें.
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बहुत बढ़िया लिखा है