Mahavir Prasad Dwivedi: हिंदी साहित्य के पथ प्रदर्शक, आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी जीवन चंद हस्तियों में से एक हैं जिन्होंने हिंदी गद्य को एक नई दिशा देने के लिए अथक, असीम प्रयास किया. इन्होंने अपनी पत्रिका सरस्वती के संपादन के समय सिर्फ ₹20 तनख्वाह पर कार्य किया. उनके इसी प्रयास के कारण (1893–1918) तक का समय द्विवेदी युग के नाम से जाना जाता है.
उन्होंने बहुत से साहित्य से व्याकरण, शैली से अशुद्धियां दूर कर समाज को एक सरल एवं सटीक रचनाएं प्रदान की. इस लेख में आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी जी की हिंदी साहित्य के प्रतीक संघर्ष गाथा और जीवनी (Mahavir Prasad Dwivedi Biography in Hindi) के बारे में दिया गया है.
Mahavir Prasad Dwivedi Biography in Hindi (आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी का जीवन परिचय)
जन्म | 5 मई 1864 ई0 |
जन्म स्थान | रायबरेली दौलतपुर |
पिता | रामसहाय द्विवेदी |
माता | ———– |
मृत्यु | 21 दिसंबर 1938 ई0 |
भाषा | हिंदी, अरबी, फारसी, तथा अंग्रेजी |
हिंदी गद्य साहित्य के युगविधायक महावीर प्रसाद द्विवेदी का जन्म (Birth of Mahavir Prasad Dwivedi) 5 मई सन 1864 ई0 में रायबरेली जिले के दौलतपुर गांव में हुआ था. कहा जाता है कि इनके पिता रामसहाय द्विवेदी को महावीर का ईस्ट था, इसलिए इन्होंने पुत्र का नाम महावीर सहाय रखा. इनकी प्रारंभिक शिक्षा गांव की पाठशाला में हुई. पाठशाला के प्रधानाध्यापक ने भूलवश इनका नाम महावीर प्रसाद लिख दिया था. यह भूल हिंदी साहित्य में स्थाई बन गई. 13 वर्ष की अवस्था में अंग्रेजी पढ़ने के लिए उन्होंने रायबरेली के जिला स्कूल में प्रवेश लिया.
यहां संस्कृत के अभाव में इनको वैकल्पिक विषय फारसी लेना पड़ा. यहां 1 वर्ष व्यतीत करने के बाद कुछ दिनों तक उन्नाव जिले के रंजीत पुरवा स्कूल में और कुछ दिनों तक फतेहपुर में पढ़ने के पश्चात ही एक पिता के पास मुंबई चले गए. वहां उन्होंने संस्कृत, गुजराती मराठी और अंग्रेजी का अभ्यास किया. उनकी उत्कृष्ट ज्ञान पिपासा कभी तृप्त ना हुई, किंतु जीविका के लिए उन्होंने रेलवे में नौकरी कर ली. रेलवे में विभिन्न पदों पर कार्य करने के बाद झांसी में डिस्ट्रिक्ट ट्राफिक सुप्रीमडेंट के कार्यालय में मुख्य लिपिक हो गए.
5 वर्ष बाद उच्च अधिकारियों से खिन्न होकर इन्होंने नौकरी त्यागपत्र दे दिया. हिंदी साहित्य साधना का क्रम सरकारी नौकरी के नीरस वातावरण में भी चल रहा था और इस अवधि में इनके संस्कृत ग्रंथों के कई अनुवाद और कुछ आलोचनाएं प्रकाश में आ चुकी थी. सन 1930 ई0 में द्विवेदी जी ने ‘सरस्वती’ पत्रिका का संपादन स्वीकार किया. 1920 ई0 तक यह दायित्व इन्होंने निष्ठा पूर्वक निभाया. सरस्वती से अलग होने पर उनके जीवन में अंतिम 18 वर्ष के नीरस वातावरण में बड़ी कठिनाई से व्यतीत हुए. 21 दिसंबर सन 1938 ई0 को रायबरेली में हिंदी के इस महान साहित्यकार का स्वर्गवास (Death of Mahavir Prasad Dwivedi) हो गया.
Literacy’s introduction of Mahavir Prasad Dwivedi (आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी का साहित्यिक परिचय)
हिंदी साहित्य में द्विवेदी जी का मूल्यांकन तत्कालीन परिस्थितियों के संदर्भ में किया जा सकता है. वह समय हिंदी के कलात्मक विकास का नहीं, हिंदी के अभाव की पूर्ति का था. द्विवेदी जी ने ज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों, इतिहास, अर्थशास्त्र, विज्ञान, पुरातत्व, राजनीति, जीवनी आदि से सामग्री लेकर हिंदी के अभाव की पूर्ति की. हिंदी गद्य को शुद्ध करने एवं सवारने और परिष्कृत करने में आजीवन सलंग्न रहे. इन हिंदी साहित्य सम्मेलन ने ‘साहित्य वाचस्पति’ एवं नागरी प्रचारिणी सभा ने ‘आचार्य’ की उपाधि से सम्मानित किया था.
पदुमलाल पन्नालाल बख्शी कहते थे – ‘मुझसे कोई अगर पूछे कि द्विवेदी जी ने क्या किया, तो मैं समग्र आधुनिक हिंदी साहित्य दिखाकर कह सकता हूं, यह सब उन्हीं की सेवा का फल है’
उस समय टीका टिप्पणी करके सही मार्ग का निर्देशन देने वाला कोई ना था. उन्होंने इस अभाव को दूर किया तथा भाषा के स्वरूप संगठन, वाक्य विन्यास, विराम चिन्ह के प्रयोग तथा व्याकरण की शुद्धता पर विशेष बल दिया. द्विवेदी जी ने लेखकों की अशुद्धियों को रेखांकित किया, स्वयं लिखकर तथा दूसरों से लिखवा कर इन्होंने हिंदी गद्य को पुष्ट और परिमार्जित किया. हिंदी गद्य के विकास में इसका ऐतिहासिक महत्व है.
Compositions of Mahavir Prasad Dwivedi ( आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी जी की रचनाएं)
द्विवेदी जी ने 50 से अधिक ग्रंथों तथा सैकड़ों निबंधों की रचना की थी. इनके मौलिक ग्रंथों में- अद्भुत, आलाप, विचार विमर्श, रसज्ञ रंजन, संकलन, साहित्य सीकर, कालिदास की निरंकुशता, कालिदास और उनकी कविता, हिंदी भाषा की उत्पत्ति, अतीत स्मृति, वाग विलास आदि महत्वपूर्ण है. यह उच्च कोटि के अनुवादक भी थे. इन्होंने संस्कृत और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में अनुवाद किया है. संस्कृत के अनुरूप ही ग्रंथों में- रघुवंश, हिंदी महाभारत, कुमारसंभव, किरातार्जुनीय तथा अंग्रेजी से अनुसूचित ग्रंथों में- बेकन विचार माला, शिक्षा, स्वलीनता आदि उल्लेखनीय हैं.
Language style of Mahavir Prasad Dwivedi (द्विवेदी जी की भाषा शैली)
द्विवेदी जी की भाषा अत्यंत परिष्कृत, परिमार्जित एवं व्याकरण सम्मत है. उसमें पर्याप्त गति तथा प्रवाह है. इन्होंने हिंदी के शब्द भंडार की श्री वृद्धि में अतिप्रीत सहयोग दिया. इनकी भाषा में कहावतें, मुहावरे, सूक्तियां आदि का प्रयोग भी मिलता है. कठिन से कठिन विषय को सरल भाषा में प्रस्तुत करना इनकी शैली की सबसे बड़ी विशेषज्ञता है. शब्दों के प्रयोग में इनको रोड़ी वादी नहीं कहा जा सकता, क्योंकि आवश्यकता अनुसार तत्सम शब्दों के अतिरिक्त अरबी, फारसी, तथा अंग्रेजी शब्दों का इस्तेमाल भी इन्होंने व्यवहार पूर्वक किया है.
“महाकवि माघ का प्रभात वर्णन” निबंध में संस्कृत के महाकवि माघ के प्रभात वर्णन संबंधी हृदयस्पर्शी स्थलों को निबंधकार ने हमारे सामने रखा. उसने बहुत ही कलात्मक ढंग से यह दिखलाया कि किस तरह सूर्य और चंद्रमा, नक्षत्र एवं दिग बंधुओं अपनी-अपनी क्रियाओं में तल्लीन है. सूर्य की रश्मिया अंधकार को नष्ट कर जीवन और जगत को प्रकाश से परिपूर्ण कर देती हैं. रसिक चंद्रमा अपनी शीतल किरणों से रजनीगंधा को प्रमुदित कर देता है सूर्य और चंद्रमा समय-समय पर उसे कैसे बनाएं विवेचन करते हुए एक दूसरे के प्रति प्रतिद्वंदिता के भाव से भर उठते हैं. कैसे प्रवासी सूर्य का स्थान चंद्रमा लेकर बिग बंधुओं से हास परिहास करते हुए सूर्य के कोप का भाजन बन उसके द्वारा प्रस्तुत किया जाता है.
♦Conclusion♦
रायबरेली के एक छोटे से गांव में जन्मे हिंदी साहित्य के युग निर्माता आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी जी पर आधारित यह लेख “Mahavir Prasad Dwivedi | आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी का जीवन परिचय” आपको कैसा लगा, आप अपने विचार COMMENT के माध्यम से हमें बताएं.
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