51- या तो खामोश रहो या फिर ऐसी बात कहो जो खामोशी से बेहतर हो।
52- संसार मे न ही कोई तुम्हारा मित्र हैं और ना ही कोई शत्रु । तुम्हारे अपने विचार ही इसके लिए उत्तरदायी हैं।
53- अगर तुम पढ़ना जानते हैं तो, हर व्यक्ति स्वयं में एक पुस्तक हैं।
54- वे ही विजयी हो सकते हैं, जिन्हें विश्वास हैं कि वे विजयी होंगे।
55- यदि तुम सफल होना चाहते हैं तो, अपना ध्यान समस्या खोजने में नही बल्कि समाधान खोजने में लगाइए।
56- व्यक्ति के पास जितने अधिक विचार होते हैं, वही उतने ही कम शब्दो मे उन्हें अभिव्यक्त कर देता हैं।
57- अपनी अज्ञानता का आहसास होना, ज्ञान की दिशा में बढ़ाया गया एक बड़ा कदम हैं।
58- यदि मनपसंद कार्य मिल जाएं तो मूर्ख भी उसे पूरा कर सकता हैं, किंतु बुद्धिमान पुरुष तो वही हैं जो प्रत्येक कार्य को अपने लिए रुचिकर बना ले।
59- उठिष्ठत! निर्भीक और समर्थ बनों। सम्पूर्ण उत्तरदायित्व अपने कंधों पर संभालो और समझ लो कि तुम ही अपने भाग्य विधाता हो।
60- जितनी शक्ति और सहायता तुम्हे चाहिए, वह सब तुम्हारे अंदर ही हैं। अतः अपना भविष्य स्वयं बनाओ।
61- यदि बार बार भी असफल हो जाओ, तो क्या ? कोई हानि नही सहस्त्र बार इस आदर्श को धारण करो और यदि सहस्त्र बार भी असफल हो जाओ, तो भी एक बार फिर प्रयत्न करों।
62- मनुष्य और पशु में मुख्य अंतर उनके मन कि एकाग्रता की शक्ति में हैं।
63- तुम्हे अंदर से बाहर विकसित होना हैं। कोई तुमको न सीखा सकता है, न आध्यात्मिक बना सकता हैं । तुम्हारा , तुम्हारी आत्मा के सिवाय कोई गुरु नही हैं।
64- सदा विस्तार करना ही जीवन हैं और संकोच मृत्यु । जो अपना स्वार्थ देखता हैं, आराम तलब हैं, आलसी हैं। उसके लिए तो नरक में भी जगह नही हैं।
65- यदि तुम अपने आपको योग्य बना लो, तो सहायता स्वयंमेव तुम्हे आ मिलेगी।
66- स्वयं के दोषों का निरीक्षण और दूसरों के गुणों का पर्यावलोकन करना ही उज्ज्वल व्यक्तित्व की पहचान हैं।
67- वह व्यक्ति महान हैं, जो शान्तचित्त होकर धैर्यपूर्वक कार्य करता हैं।
68- जो उपकार करें, उसका प्रत्युपकार करना चाहिए , यही सनातन धर्म हैं
69- विष से भी अमृत तथा बालक से भी सुभाषित ग्रहण करें।
69- कार्य की अधिकता से उकताने वाला व्यक्ति, कभी कोई बड़ा कार्य नही कर सकता ।
70- भलाई अमरत्व की ओर ले जाती हैं और बुराई विनाश की ओर।
71- व्यथा और वेदना की पाठशाला में जो पाठ सीखे जाते हैं, वे पुस्तकों और विश्विद्यालयों में नही मिलते हैं।
72- विश्वास करना एक गुण हैं, अविश्वास दुर्बलता की जननी हैं।
73- अगर आप इस बात की परवाह नही करें कि श्रेय किसे मिलेगा, तो आप बहुत कुछ कर सकते हैं।
74- चरित्रहीन शिक्षा, मानवताविहीन विज्ञान और नैतिकताविहीन व्यापार खतरनाक होते हैं ।
75- जो बार बार मिलने वाली ठोकरों से नही चेतता , वह अनिष्ट को आमंत्रण देता हैं।